Save West Bengal from burning in the fire of anarchy

Editorial: पश्चिम बंगाल को अराजकता की आग में जलने से बचाओ

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Save West Bengal from burning in the fire of anarchy

Save West Bengal from burning in the fire of anarchy: पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता आजकल रेप, हत्या की वारदातों, हिंसा, जुलूस, प्रदर्शन, पुलिस दमन, अराजकता का शिकार हो गई है तो बेहद चिंता की बात है। बंगाल बौद्धिकों का प्रदेश रहा है, यह जगह कविवर रविंद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, नेता जी सुभाष बोस एवं अन्य अगण्य ऐसी विभूतियों का घर रही है, जिन्होंने न केवल देश अपितु पूरे विश्व को ज्ञान और उदार चरित्र का संदेश दिया। उन लोगों के कर्म, उनका चरित्र और उनके आदर्शों को रहती दुनिया तक याद रखा जाएगा।

हालांकि उसी प्रदेश में आजकल अस्पताल के अंदर एक महिला डॉक्टर से रेप एवं हत्या हो जाती है और फिर अपराधी को पकडऩे के बजाय शासनतंत्र उसे बचाने में लग जाता है। यह कितना बड़ा अन्याय है कि जिन लोगों पर नागरिकों को न्याय दिलाने का दायित्व है, वही उन अपराधियों के मददगार बन रहे हैं। इसकी वजह से वह जनता जिसका जमीर जिंदा है, सडक़ पर आ जाती है, लेकिन सडक़ पर उसे पुलिस की लाठियां खानी पड़ती हैं, तेज पानी की बौछारें झेलनी पड़ती है और फिर पुलिस केस भी झेलने पड़ते हैं। कोलकाता में आरजी कर अस्पताल के अंदर रेप एवं मर्डर मामले में जिस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं। इस मामले में अभी तक डॉक्टर ही हड़ताल पर थे और प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन अब इसने राजनीतिक रंग ले लिया है और सोमवार को तो राजधानी कोलकाता में जो हुआ, उसने प्रदेश सरकार के असली रंग को सामने ला दिया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम एक समय इस प्रकार लिया जाता था कि वे निर्बलों की मददगार हैं। उन्होंने सडक़ से लेकर संसद तक देश के कमजोर तबकों के लिए काम किया लेकिन फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके तेवर जिस प्रकार से बदले हैं, वह उन सभी लोगों को चिंतित करता है जोकि नेताओं में अच्छाई को तलाशते हैं। इस मामले से पहले बंगाल में जितने भी हिंसा और प्रदर्शन के मामले सामने आए हैं, उनके राज्य सरकार की भूमिका बेहद संशयपूर्ण रही है। संदेशखाली जिसमें एक अप्रवासी ने आकर महिलाओं का यौन शोषण किया और अवैध धंधों के बल पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया, पर कार्रवाई करते हुए प्रदेश सरकार घबराती रही। न जाने क्यों जैसे प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से टकराने को तैयार रहती है लेकिन राज्य में अपराध की रोकथाम और रोजगार एवं काम-धंधे विकसित करने की जरूरत सरकार को नहीं लगती। क्या आजकल जैसे हालात कोलकाता हैं, कोई कंपनी यहां अपनी इकाई स्थापित करना चाहेगी। न जाने कब हड़ताल हो जाए, कब भारत बंद हो जाए, कब हिंसक होकर लोग सडक़ पर उतर जाएं। कहां आगजनी हो जाए और सबकुछ स्वाह हो जाए।

आरजी कर अस्पताल में रेप एंव मर्डर की वारदात के बाद राज्य पुलिस को यहां सुरक्षा बढ़ानी चाहिए थी लेकिन हुआ कुछ ऐसा, जोकि हैरान करता है। रात के अंधेरे में हजारों की तादाद में उपद्रवी आते हैं और अस्पताल के अंदर तोडफ़ोड़ करते हुए सबूत नष्ट करके चले जाते हैं और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसके लिए अपने राजनीतिक विरोधियों को दोषी ठहराने में लग जाती हैं। यह भी कितना दुखद है कि प्रदेश में लोग सच बोलने का साहस नहीं कर रहे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं की ओर से भी संयुक्त होकर कार्रवाई की मांग नहीं की जा रही। मंगलवार को भाजपा के रोष मार्च के दौरान प्रत्येक कार्यकर्ता एवं नेता को हिरासत में ले लिया गया। क्या जायज मांगों को लेकर प्रदर्शन का हक नहीं मिलेगा। दूसरे राज्यों में जब अपराध घटता है तो इसी राज्य से इंसाफ की मांग होने लगती है, लेकिन जब बंगाल ही हिंसा और अराजकता की आग में जल रहा होता है तो यहां के शासक खुद सडक़ पर उतर कर शांति का संदेश देने का ढोंग करते हैं। यह सब कितना हास्यकारी है।

एक मुख्यमंत्री का एक आदेश जोकि वह अपने आफिस में बैठकर देता है, ही काफी होगा, व्यवस्था कायम करने के लिए। उसे सडक़ पर आकर ऐसा दिखावा करने की आवश्यकता नहीं है। इसका अर्थ यह भी है कि संबंधित मुख्यमंत्री से राजकाज संभाला नहीं जा रहा है, वह सिर्फ एक राजनीतिक दल के मुखिया के तौर पर पूरे प्रदेश को देख रहे हैं। बंगाल में आजकल जो भी हो रहा है, वह पूरी तरह अनुचित और भयावह है। आखिर ऐसे दंगों, प्रदर्शन, हिंसा, आंदोलन के बीच कोई कैसे जी सकता है। हम अपने स्कूली बच्चों, छात्रों, युवाओं को क्या सीखा रहे हैं। पश्चिम बंगाल को अपने अंतर्मन में जागना होगा और यह इसकी विरासत और भविष्य की जरूरत है।

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